इतिहास का मतलब दिक्कालीय परिवेश और घटनाओं के दस्तावेजीकरण का है और इसके लिए इंतज़ार किया जाना प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिहाज से जरुरी नहीं है। इतिहास द्रष्टा द्वारा सीधे खुद लिखने के बजाय जब भी कालान्तर में लोगों द्वारा बिखरे हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर इतिहास लिखा जाता है प्रमाणिकता के साथ समझौता करना पड़ता है।
सृजनगाथा में रवीन्द्र प्रभात की ताजातरीन पुस्तक हिंदी ब्लोगिंग का इतिहास पर डा. अरविन्द मिश्र की सारगर्भित समीक्षा पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें :
2 टिप्पणियां:
सार्थक प्रयास शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर सराहनीय प्रयास है समीक्षा होती रहनी चाहिए ....
भ्रमर ५
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