मंगलवार, 3 जनवरी 2012

हिंदी के एक खास ब्लॉगर से खास मुलाक़ात ...


जी हाँ हिंदी ब्लॉग जगत में एक व्यक्ति है रवीन्द्र प्रभात किन्तु लोग कहते हैं कि वह व्यक्ति नहीं विश्व है । रवीन्‍द्र प्रभात ब्‍लॉग जगत में सिर्फ एक कुशल रचनाकार के ही रूप में नहीं जाने जाते हैं, उन्‍होंने ब्‍लॉगिंग के क्षेत्र में कुछ विशिष्‍ट कार्य भी किये हैं। वर्ष 2007 में उन्‍होंने ब्‍लॉगिंग में एक नया प्रयोग प्रारम्‍भ किया और ‘ब्‍लॉग विश्‍लेषण’ के द्वारा ब्‍लॉग जगत में बिखरे अनमोल मोतियों से पाठकों को परिचित करने का बीड़ा उठाया। 2007 में पद्यात्‍मक रूप में प्रारम्‍भ हुई यह कड़ी 2008 में गद्यात्‍मक हो चली और 11 खण्‍डों के रूप में सामने आई। वर्ष 2009 में उन्‍होंने इस विश्‍लेषण को और ज्‍यादा व्‍यापक रूप प्रदान किया और विभिन्‍न प्रकार के वर्गीकरणों के द्वारा 25 खण्‍डों में एक वर्ष के दौरान लिखे जाने वाले प्रमुख ब्‍लागों का लेखा-जोखा प्रस्‍तुत किया। इसी प्रकार वर्ष 2010 में भी यह अनुष्‍ठान उन्‍होंने पूरी निष्‍ठा के साथ सम्‍पन्‍न किया और 21 कडियों में ब्‍लॉग जगत की वार्षिक रिपोर्ट को प्रस्‍तुत करके एक तरह से ब्‍लॉग इतिहास लेखन का सूत्रपात किया।ब्‍लॉग जगत की सकारात्‍मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के उद्देश्‍य से अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैं, उनमें ‘ब्‍लॉगोत्‍सव’ एक अहम प्रयोग है। अपनी मौलिक सोच के द्वारा रवीन्‍द्र प्रभात ने इस आयोजन के माध्‍यम से पहली बार ब्‍लॉग जगत के लगभग सभी प्रमुख रचनाकारों को एक मंच पर प्रस्‍तुत किया और गैर ब्‍लॉगर रचनाकारों को भी इससे जोड़कर समाज में एक सकारात्‍मक संदेश का प्रसार किया।

वर्ष-2010 का वर्धा सम्मलेन हो,अथवा वर्ष-2011 की खटीमा ब्लॉगर संगोष्ठी । कल्याण (मुम्बई) की राष्ट्रीय ब्लॉगर संगोष्ठी हो अथवा बैंकॉक का अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन ...सभी जगह जहां इनकी सार्थक उपस्थिति रही वहीँ इनके द्रारा प्रसारित वक्तव्य को हिंदी ब्लॉग जगत ने सिर आँखों पर लिया । अप्रैल-2011 में इन्होने 51 वरिष्ठ-कनिष्ठ ब्लॉगर्स को भारत की राजधानी दिल्ली में परिकल्पना सम्मान से सम्मानित कर ब्लॉगिंग की ताक़त का एहसास कराया । इन्होनें अविनाश वाचस्पति के साथ मिलकर हिंदी ब्लॉगिंग की पहली मूल्यांकनपरक पुस्तक का संपादन किया, वहीँ पहली बार हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास प्रकाशित कर एक नया इतिहास रच दिया । वर्ष-२००९ में ब्लॉग विश्लेषण के लिए संवाद डोट कॉम ने इन्हें संवाद सम्मान से सम्मानित किया । इस वर्ष 11 जनवरी को खटीमा ब्लॉगर मीट के दौरान साहित्य शारदा मंच ने इन्हें "ब्लॉग श्री", दिनांक 09 दिसंबर को यु. जी. सी. संपोषित राष्ट्रीय ब्लॉगर संगोष्ठी कल्याण (मुम्बई) में इन्हें "ब्लॉग भूषण" तथा दिनांक 18 दिसंबर को बैंकॉक में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन में हिंदी ब्लॉगिंग में उल्लेखनीय कार्य हेतु "सृजन श्री" सम्मान से सम्मानित किया गया ।


इस वर्ष इनका पहला उपन्यास "ताकि बचा रहे लोकतंत्र" भी आया है और दलित विमर्श के कारण यह उपन्यास आजकल काफी चर्चा में है । विगत एक सप्ताह से मैं लखनऊ में हूँ, मैंने रवीन्द्र जी को फोन किया कि मैं आपसे मिलना चाहता हूँ, उन्होंने सहर्ष अपनी स्वीकृति दी और उनसे मिलने उनके आवास पर गया, जहां विभिन्न विषयों पर उन्होंने खुलकर चर्चा की । प्रस्तुत है रवीन्द्र प्रभात जी से हुई गुफ्तगू का मुख्य अंश :

नमस्कार रवीन्द्र जी !
उत्तर: नमस्कार

इस बार माह दिसंबर में आपने ब्लॉग विश्लेषण प्रस्तुत नहीं किया, क्यों ?
उत्तर: दरअसल,इसबार दिसंबर के महीने में लगातार मैं शहर से बाहर रहा, कभी कल्याण,कभी मुम्बई कभी थाईलैंड तो कभी कोलकता की यात्रा पर । व्यस्तता अधिक थी, इसलिए विश्लेषण प्रस्तुत करना संभव नहीं हो सका   वैसे मेरी कोशिश है कि इसे जनवरी-2012 के प्रथम पक्ष  में प्रस्तुत किया जाए  


कल्याण ब्लॉगर संगोष्ठी में आपने इस वर्ष के कुछ आंकड़े प्रस्तुत किये थे,आपकी नज़रों में इस समय हिंदी के कितने ब्लॉग हैं ?
उत्तर:चिट्ठाजगत के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष की प्रथम तिमाही में लगभग सबा छ: हजार के आसपास हिंदी के ब्लॉग अबतरित हुए हैं, दूसरी तिमाही में पांच हजार आठ सौ  इसके बाद चिट्ठाजगत ने आंकड़े देने बंद कर दिए   मैंने परिकल्पना की ओर से  ब्लॉग सर्वे किया था और कुल मिलाकर जिस निष्कर्ष पर पहुंचा उसके हिसाब से इस वर्ष २० हजार के आसपास हिंदी के ब्लॉग अवतरित हुए हैं , जिसमें से लगभग एक हजार के आसपास पूर्णत: सक्रीय है   इस वर्ष के आंकड़ों को पूर्व आंकड़ों  में मिला दिया जाए तो लगभग ५० हजार ब्लॉग हिंदी के हैं, किन्तु सक्रियता की दृष्टि से देखा जाए तो हिंदी अभी भी काफी पीछे है क्योंकि हिंदी में सक्रीय ब्लॉग की संख्या अभी भी पांच हजार से ज्यादा नहीं है  वहीँ भारत की विभिन्न भाषाओं को मिला दिया जाये तो अंतरजाल पर यह संख्या पांच लाख के आसपास है  तमिल, तेलगू और मराठी में हिंदी से ज्यादा सक्रिय ब्लॉग है  

आपको हिंदी के पहले इतिहासकार के रूप में एक पहचान मिली है और आप हिंदी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक के रूप में अपनी छवि बिकसित करने में सफल हुए हैं, इसकी प्रेरणा आपको कहाँ से मिली ?
उत्तर:मेरी समझ से कार्य बड़े होते हैं अलंकरण नहीं  शुरुआत छोटी ही होती है। धीरे-धीरे बड़ा काम अन्जाम दे दिया जाता है। दो दशक के साहित्यिक अनुभव के पश्चात जब मैंने ब्लॉगिंग में कदम रखा तो उस समय हिंदी के ५०-६० सक्रीय ब्लॉगर ही थे   मैंने मजाक-मजाक में वर्ष-२००७ में ब्लॉग विश्लेषण शुरू किया जो आगे चलकर एक दुरूह कार्य में परिवर्तित हो गया   मैंने हिम्मत नहीं हारी और इस यज्ञ को जारी रखा फिर अपने आप सबकुछ होता चला गया   

आपको नहीं लगता कि ब्लॉगिंग में चर्चित हो जाने से आपका साहित्यकार पक्ष गौण होता जा रहा है ?
उत्तर:नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता  क्योंकि ब्लॉगिंग विधा नहीं एक नया माध्यम है विचारों को प्रस्तुत करने का  चाहे वह साहित्यिक विचार हों,सामाजिक हो अथवा सांस्कृतिक  यदि मैं कहूं कि ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक ऐसा  माध्यम है जो अन्य सभी माध्यमों से सशक्त है तो शायद किसी को न अतिश्योक्ति होगी और न शक की गुंजाईश ही  

कुछ सोचते हुए,थोड़ा रुककर फिर उन्होंने कहा :
उत्तर:यहाँ नयी बातें पता चलती हैं, लिखने-पढ़ने की इच्छा पूरी होती है, टिप्पणियों के ज़रिये सराहना मिलती है, अच्छे पाठक और दोस्त मिलते हैं  बहुत कुछ लिखने और पढ़ने के दौरान हमें अपनी कमियों और खूबियों का पता भी चल जाता है  कहा गया है कि ब्लॉगिंग की दुनिया समय और दूरी के सामान अत्यंत विस्तृत और व्यापक है, साथ ही पूरी तरह स्वतंत्र,आत्म निर्भर और मनमौजी किस्म की है । यहाँ आप स्वयं लेखक, प्रकाशक और संपादक की भूमिका में होते हैं । यहाँ केवल राजनीतिक टिप्पणियाँ और साहित्यिक रचनाएँ ही प्रस्तुत नहीं की जाती वल्कि महत्वपूर्ण किताबों का इ प्रकाशन तथा अन्य सामग्रियां भी प्रकाशित की जाती है । हिंदी में आज फोटो ब्लॉग, म्यूजिक  ब्लॉग, पोडकास्ट, , वीडियो ब्लॉग, सामूहिक ब्लॉग, प्रोजेक्ट ब्लॉग, कारपोरेट ब्लॉग आदि का प्रचलन तेजी से बढ़ा है । यानी हिंदी ब्लॉगिंग आज वेहद संवेदनात्मक दौर में है । 

हिंदी ब्लॉगिंग के अबतक की विकास यात्रा से आप संतुष्ट हैं ?
उत्तर:नहीं,अन्य भाषाओं की तुलना में हम काफी पीछे हैं । अग्रेजी के ब्लॉग की संख्या से यदि हिंदी की तुलना की जाए तो कई प्रकाश वर्ष का अंतर आपको महसूस होगा । फिर भी देखा जाए तो सामाजिक सरोकार से लेकर तमाम विषयों को व्यक्त करने  की दृष्टि से सार्थक ही नहीं सशक्त माध्यम बनती जा रही है यह हिंदी ब्लॉगिंग । आज हिंदी ब्लॉगिंग एक समानांतर मीडिया का रूप ले चुकी  है और अपने सामाजिक सरोकार को व्यक्त करने की दिशा में पूरी प्रतिबद्धता और वचनबद्धता  के साथ सक्रिय है । आज अपनी अकुंठ संघर्ष चेतना और सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकार के बल पर हिंदी ब्लॉगिंग महज आठ साल की अल्पायु में ही हनुमान कूद की मानिंद जिन उपलब्धियों  को लांघने में सफल हुई है वह कम संतोष की बात नहीं है ...! 


एक बार रवि रतलामी जी ने कहा था की नए सुर-तुलसी ब्लॉगिंग के जरीय ही पैदा होंगे,क्या आप इन बातों से सहमत हैं ?
उत्तर:पूरी तरह सहमत हूँ,क्योंकि इस बक्तव्य में न कोई शक है और न अतिश्योक्ति हीं । रवि जी का मैं बहुत सम्मान करता हूँ ,अभी ९ दिसंबर को कल्याण ब्लॉगर संगोष्ठी में उनसे मुलाक़ात हुयी थी,उनके व्यक्तित्व ने भी मुझे काफी प्रभावित किया। प्रयोगधर्मी ब्लॉगरों की श्रेणी में मैं उन्हें  सर्वोपरि मानता हूँ 


आज हिंदी ब्लॉगिंग को प्रिंट मीडिया काफी महत्व दे रहा है,प्रारंभिक दिनों में लोगों ने काफी मेहनत की होगी, आपकी नज़रों में प्रारंभिक दिनों के कौन-कौन  से ब्लॉगर ने ब्लॉगिंग को मजबूती देने का काम किया है ?


 उत्तर:फेहरिश्त लंबी है उसमें स्व. अमर कुमार के साथ-साथ श्रीमती पूर्णिमा बर्मन,श्री शास्त्री जे. सी. फिलिप,रवि रतलामी,बालेन्दु शर्मा दाधीच,अजित बाड्नेकर,उदयप्रकाश,अभय तिवारी, अविनाश दास,जीतेन्द्र चौधरी,ई पंडित श्रीश शर्मा, डा. अरविन्द मिश्र,अविनाश वाचस्पति, दिनेशराय द्विवेदीअशोक पांडेसमीर लाल समीरप्रियंकर, राजेश प्रियदर्शी, अनूप शुक्लज्ञानदत्त पाण्डेअनिता कुमारजाकिरअली ’रजनीश’,रश्मि प्रभा,राज भाटिया,कविता वाचकनवी,संगीता पूरी,रविश कुमार,युनुस खान, अनूप सेट्ठी,नीरज गोस्वामी,गिरीश पंकज,जय प्रकाश मानस,प्रवीण त्रिवेदी,संतोष त्रिवेदी,आकांक्षा यादव,अजय कुमार झा,प्रभात रंजन,कार्टूनिस्ट काजल कुमार  जैसे कई ब्लॉगर साथियों ने विभिन्न विषयों पर खूब लिखा। इन सबके लिए दिल में खूब सारा सम्मान है।


वर्ष-२००८ के बाद आये ब्लॉगरों में श्री प्रेम जनमेजय,दिविक रमेश,विजय कुमार सपत्ति,जी.के.अवधिया,डा. सुभाष राय,सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी,के.के. यादव,खुशदीप सहगल,सतीश सक्सेना, पद्म सिंह,गीता श्री,प्रवीण पाण्डेय,मनोज कुमार,सिद्धेश्वर,केवल राम,रेखा श्रीवास्तव,बंदना गुप्ता,अखिलेश शुक्ल,डा. रूप चंद शास्त्री मयंक,पियूष पाण्डेय,गिरीश बिल्लोरे मुकुल,ललित शर्मा,डा. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर,महेंद्र श्रीवास्तव,कुवंर कुशुमेश,डा. हरीश अरोरा,एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन,विजय माथुर,निर्मला कपिला,रंजना रंजू भाटिया,अल्पना वर्मा  के अलावा  और भी कई खास नाम हैं…अब सबका नाम तो नहीं ले सकता पर नयी पीढ़ी के कई जुझारू ब्लॉगर हैं जैसे हरीश सिंह, डा. अनवर जमाल, यशवंत माथुर,  अनुपमा त्रिपाठी,आशुतोष, अंजू चौधरी, कविता वर्मा, चंद्रभूषण मिश्र गाफिल, दिनेश कुमार उर्फ रविकर, सुमित प्रताप सिंह,डा. मोनिका शर्मा आदि । और भी कुछ नाम है जिन  लोगों की वजह से ब्लॉगिंग हिंदी में मजबूत बन पायी। 


आपकी नज़रों में वे कौन ब्लॉगर हैं  जिन्होनें तकनीकी रूप से हिंदी ब्लॉगिंग को समृद्ध किया है ?
सबका नाम लेना संभव तो नहीं है फिर भी कई प्रमुख नाम है जैसे रवि रतलामी,शास्त्री जे. सी. फिलिप,उन्मुक्त,पंकज नुरुल्ला,आलोक कुमार,अनुनाद सिंह,श्रीश शर्मा,पी. एस. पावला,सागर नाहर,कमल,राजीव खंडेलवाल,विनय प्रजापति,शैलेश भारतवासी, पियूष पाण्डेय,शाहनवाज़,कनिष्क कश्यप,नवीन प्रकाश,रविन्द्र पुंज,गिरीश बिल्लोरे मुकुल आदि ब्लॉगरों ने इस दिशा में काफी काम किया  है । 

हिंदी ब्लॉगिंग की दिशा-दशा पर कुछ कहना चाहेंगे आप?


उत्तर:हाँ क्यों नहीं ? आठ वर्षों के अंतराल में हिंदी ब्लॉगिंग के माध्यम से जो भी पहल की गयी,जो कुछ भी घटित हुआ उसे चमत्कार कहा जा सकता है,क्योंकि उसी का परिणाम है की आज ब्लॉगिंग को न्यू मीडिया का दर्ज़ा प्राप्त हुआ है ।पिछले दिनों चाहे बाढ़ हो या सुखा या फ़िर मुम्बई के आतंकवादी हमलों के बाद की परिस्थितियाँ, चाहे नक्सलवाद हो या अन्य आपराधिक घटनाएँ , चाहे पिछला लोकसभा चुनाव हो अथवा हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव या साम्प्रदायिकता, चाहे फिल्में हों या संगीत, चाहे साहित्य हो या कोई अन्य मुद्दा, तमाम ब्लॉग्स पर इनकी बेहतर प्रस्तुति हुयी है। हम दावे के साथ कह सकते हैं की हिंदी ब्लॉगिंग का भविष्य निश्चित रूप से वेहतर है 


कुछ ब्लॉग पोर्टल या वेब मैगजीन को छोड़ दिया जाए तो राजनीति से जुड़े ब्लॉग का अकाल दीखता है हिंदी में, फिर आप दावे के साथ इसे न्यू मीडिया,वैकल्पिक मीडिया या फिर कंपोजिट मीडिया कैसे कह सकते हैं ?

उत्तर:ऐसा नहीं है मनोज जी,हिंदी में राजनीति से जुड़े व्यक्तिगत ब्लॉग का अकाल नहीं है, हाँ कम जरूर है ।जहां तक राजनीति को लेकर ब्लॉग का सवाल है तो अफलातून के ब्लॉग समाजवादी जनपरिषद, नसीरुद्दीन के ढाई आखर, अनिल रघुराज के एक हिन्दुस्तानी की डायरी, अनिल यादव के हारमोनियम, प्रमोदसिंह के अजदक और हाशिया के साथ एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन के लोकसंघर्ष का जिक्र किया जाना चाहिए।

इस बार का ब्लॉगोंत्सव कबतक मनाने का इरादा है और इस बार ५१ ब्लॉगर हीं परिकल्पना सम्मान से सम्मानित होंगे या ज्यादा ?

५१ शुभ अंक है, अभी इससे ज्यादा बढाने की जरूरत मैं महसूस नहीं कर रहा हूँ .....संभव है ५ अप्रैल या फिर उसके बाद ब्लॉगोंत्सव का आयोजन हो । स्थान अभी तय नहीं है ।शीघ्र उद्घोषणा होगी । 

अपने पारिवारिक जीवन के बारे में कुछ बताएं 

उत्तर:८ मई १९८९ को मेरी शादी हुयी थी । श्रीमती जी घर और बच्चों की देख रेख इसप्रकार करती हैं की मुझे इस विषय पर ज्यादा सोचना नहीं पड़ता । फिर साहित्य और ब्लॉगिंग के लिए समय निकालना मेरे लिए काफी आसान हो जाता है । मेरे तीन बच्चे हैं,बड़ी बिटिया मॉडर्न ऑफिस मैनेजमेंट में डिप्लोमा करके आगे की तैयारी कर रही है,बेटा मैकेनिकल इंजीनियरिंग के द्वितीय वर्ष में है और सबसे छोटी बिटिया बारहवीं का इस बार फाईनल परीक्षा देने जा रही है। और क्या बताऊँ फिर कभी 

इतना कहकर उन्होंने अपनी कई व्यस्तताएं गिनायीं जिसे टाली नहीं जा सकती थी, इसलिए मैंने उनसे इजाजत लेकर कानपुर के लिए प्रस्थान कर गया और बातें अधूरी रह गयी