मंगलवार, 11 जनवरी 2011

हिंदी चिट्ठाकारी उर्जावान ब्लोगरों का एक बड़ा समूह बनता जा रहा है : रवीन्द्र प्रभात



मुझे सात जनवरी को उच्चारण पर आदरणीय डा रूप चन्द्र शास्त्री जी के खटीमा आने का आमंत्रण दिखा, उसमें अविनाश जी, रवीन्द्र प्रभात जी, सुमन जी के आने की सूचना देखकर मैं भी उत्साहित हुआ और सोचा कि जब सतीश सक्सेना ने मुझे बेनामी ब्लोगर कह ही दिया है तो क्यूँ न इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर उनके मेरे बारे में जो बेनामी होने का भ्रम है उसे तोड़ ही दिया जाए ! इससे दोनों कार्य सिद्ध हो जायेंगे मेरे , पहला ब्लॉग जगत के महारथियों से मुलाक़ात भी हो जायेगी और ब्लॉगजगत के
बड़के  भैया का भ्रम भी टूट जाएगा !

मैंने शास्त्री जी को मेल भेज दिया कि मैं आ रहा हूँ , ९ जनवरी की सुबह खटीमा पहुँच जाऊंगा ! अपने वादे के अनुसार मैं नियत तिथित को नियत समय पर खटीमा पहुँच गया, और शास्त्री जी का आथित्य सत्कार, अविनाश जी की वाक्पटुता, राजीव तनेजा जी की सात्विक प्रवृति, पद्म सिंह का गांभीर्य, पवन चन्दन की चुटीली टिप्पणियों तथा सुमन जी, केवल राम जी की आत्मीयता के साथ-साथ रवीन्द्र प्रभात जी के व्यक्तित्व का मैं कायल हो गया !

अब खटीमा में ९ जनवरी को क्या हुआ यह कई लोगों ने बताया,मगर दूसरे दिन १० तारीख की हम अपनी महेन्द्रनगर की  अविस्मरनीय यात्रा के बारे में आज बताने जा रहा हूँ-

सुबह-सुबह हम लोगों ने पैदल विदेश यात्रा करने का निर्णय लिया। खटीमा टनकपुर मार्ग पर स्थित बनबसा से करीब 15किमी दूर महेन्द्रनगर स्थित है जो एक समय विदेशी बाजार के कारण आकर्षण का केन्द्र बिन्दु था। सुमन जी की ये ख्वाहिश थी,रवीन्द्र प्रभात जी ने भी मुस्कुराकर अपनी सहमति दे दी ! फिर आदरणीय शास्त्री जी हमारे कमरे में प्रविष्ट हुए और कहा कि चलिए बनाबासा तक मैं अपनी गाडी से छोड़ देता हूँ !

रास्ते भर शास्त्री जी उस क्षेत्र की जानकारियाँ देते जा रहे थे और हम लोगों का ज्ञानवर्द्धन करते जा रहे थे!जब  हम लोग बनाबासा पहुंचे तो डा रूप चन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि "महेन्द्रनगर का रास्ता बनबसा डैम से होकर जाता है  जो आजादी से कुछ समय पूर्व ही बनना शुरू हुआ था। उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी नहर शारदा नहर यहीं से निकलती है पास में ही लोहियाहेड नामक स्थान पर एक जलविद्युत परियोजना भी है। डैम को पार करते ही भारतीय सीमा समाप्त हो जाती है यहीं पर भारतीय चौकी है। यहाँ से करीब 2 किमी दूर गड्डा चौकी नेपाली चेक पोस्ट है। गड्डा चौकी से महेन्द्रनगर के लिये बस चलती है। "

इतना कहकर उन्होंने हम लोगों से विदा लिया और  रवीन्द्र प्रभात जी से मुखातिव होते हुए कहा कि आप लोग पांच बजे तक अवश्य आ जाईयेगा, नहीं तो ट्रेन छोटने की संभावना रहेगी ! उभें विदा करने के बाद हम लोग पैदल आगे बढ़ने लगे !मैं प्रभात जी के साथ चल रहा था इसलिए सोचा कि इस ऐतिहासिक क्षण को क्यों न अविस्मरनीय बना लिया जाए ? बातों ही बातों में मैंने प्रश्न किया कि प्रभात जी हमें ब्लोगिंग को किस रूप में लेना चाहिए ?

उन्होंने मेरी ओर देखा, मुस्कुराया और बड़ी शालीनता के साथ कहा कि , देखिये पाण्डेय जी आपने  जन्म लिया है तो आपकी भी एक दिन उम्र पूरी हो ही जायेगी, किन्तु मजा तब है जब यह सुख, शान्ति और आनंद के भाव से परिपूर्ण हो सके ! हमारे लिए यह संभव भी है , क्योंकि हमारे पास चिंतन शक्ति है ! परिवर्तन की क्षमता है ! कम भी हो तो उसका विकास करने की हम क्षमता रखते है !हर जगह-हर क्षेत्र में सुख के साथ-साथ दु:ख के भाव भी जुड़े हुए होते  है !इस दु:ख के कारणों को समझ कर दूर करने की क्षमता भी हमारे पास होती है ! आवश्यकता इस बात की है कि हम इस विषय को अपनी चिंतन धारा से जोड़ें ! ब्लोगिंग में चाहे शास्त्रीय भाव हो  , चाहे व्यवहारिक भाव ! हम संकल्प करें , दृढ़ता दिखाएँ और अभ्यास भी निरंतर करें ! इससे हम उर्जापूर्ण जीवन की यात्रा तय कर सकते हैं .....फिर थोड़ा रुककर उन्होंने कहा कि पाण्डेय जी मेरे विचार से प्रत्येक ब्लोगर अपनी सकारात्मक चिंतन धारा को ब्लोगिंग से जोड़े , यानी जब हम बदलेंगे तभी जग बदलेगा !"

मैं वेहद उत्साहित था उनके विचारों को सुनकर और वे चलते-चलते जीवन-सृजन और ब्लोगिंग के विन्हिन्न पहलूओं से मुझे रूबरू कराते जा रहे थे ,हमारे साथ-साथ लोकसंघर्ष वाले सुमन जी भी चल रहे थे और उन्हें जो बातें अच्छी लग रही थी बस "NICE "  बोलकर चुप हो जा रहे थे ! मैंने " NICE " लिखने का राज जब सुमन जी पूछा तो उन्होंने हंसते हुए कहा इस रहस्य को मैंने अभी तक खोला नहीं था पाण्डेय जी जब आपने पूछ ही लिया तो बता देता हूँ कि इस ब्लॉग जगत में यदि कुछ सुलझे हुए ब्लोगर हैं तो कुछ उलझे हुए भी हैं यानी कुछ ऐसे तत्त्व पैदा हो गए हैं यहाँ जिनका एक ही मकसद है उलटी-सीधी टिपण्णी करो और चर्चा में बने रहो ! उनसे उलझने का मतलब है अपनी उर्जा काक्षय करना, इसीलिए मैं NICE  लिखता हूँ ताकि मेरी टिपण्णी में जिसे जो ढूँढना है ढूंढ ले !यह कहकर उन्होंने लंबा ठहाका लगाया और कहा कि इसकी व्यापक व्याख्या करानी हो तो इस ब्लॉग जगत में दो रवि हैं एक रवि रतलामी और दूसरे रवीन्द्र प्रभात, इनसे करा सकते हैं !

मैंने प्रभात जी से पूछा कि सर, यह बताईये आप पत्रिकाओं से कितना भिन्न मानते हैं ब्लोगिंग को ?

उन्होंने कहा कि  ब्लोगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र,आत्म निर्भर और  मनमौजी किस्म की है ! यहाँ आप स्वयं लेखक, प्रकाशक और संपादक की भूमिका में होते हैं !ब्लॉग की दुनिया समय और दूरी के सामान अत्यंत विस्तृत और व्यापक है !यहाँ केवल राजनीतिक टिप्पणियाँ और साहित्यिक रचनाएँ ही नहीं प्रस्तुत की जाती वल्कि महत्वपूर्ण किताबों का इ प्रकाशन तथा अन्य सामग्रियां भी प्रकाशित की जाती है . आज हिंदी में भी फोटो ब्लॉग, म्यूजिक  ब्लॉग, पोडकास्ट, विडिओ ब्लॉग, सामूहिक ब्लॉग, प्रोजेक्ट ब्लॉग, कारपोरेट ब्लॉग आदि का प्रचलन तेजी से बढ़ा है ! यानी पत्रिकाओं की तुलना में ब्लॉग सर्वाधिक मॉस से जुड़ा हुआ माध्यम है !
तो क्या यह मान कर चला जाए कि आने वाला समय ब्लोगिंग का है ?

उन्होंने कहा हाँ,विल्कुल मान कर चला जा सकता है !वर्ष-२०१० में हिंदी ब्लोगिंग के चहुमुखी विकासमें भले ही अवरोध की स्थिति बनी रही पूरे वर्ष भर,किन्तु बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका अपने इस आकलन को लेकर करीब-करीब एकमत है कि आने वाला कल हमारा है यानी हिंदी ब्लोगिंग का है ।

सर, कल सम्मलेन में आपने अपने उद्वोधन में कहा था, कि इस समय हिन्दी में लगभग 22 हजार के आसपास ब्लॉग हैं,जबकि यह संख्या अंग्रेजी की तुलना में काफी कम है। अंग्रेजी में इस समय लगभग चार करोड़ से अधिक ब्लॉग्स हैं। हालॉकि यह अलग बात है कि अप्रत्याशित रूप से ब्लॉगिंग विश्व में एशिया का दबदबा कायम है। टेक्नोरेटी के एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के कुल ब्लॉग्स में से 37 प्रतिशत जापानी भाषा में हैं, 36 प्रतिशत अंग्रेजी में, और 8 प्रतिशत के साथ चीनी तीसरे नम्बर पर है। अभी तुलनात्मक रूप से भले ही हिन्दी ब्लॉग का विस्तार कॉफी कम है किन्तु हिन्दी ब्लॉगों पर एक से एक एक्सक्लूसिव चीजे प्रस्तुत की जा रही हैं और ऐसी उम्मीद की जा रही है की आने वाले समय में हिन्दी ब्लॉगिंग का विस्तार काफी व्यापक होगा।

लेकिन मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि हिंदी ब्लोगिंग के विकास में सबसे बड़ी बाधा हिंदी के ब्लोगर ही हैं,पिछले दिनों  तरह-तरह की खेमेवाजी, ब्लॉग बबाल और असंसदीय टिप्पणियाँ देखने को मिली, मेरे भी एक व्यंग्य पर मुझे ब्लॉग जगत के तथाकथित भैया लोगों ने घेरने की कोशिश की थी,हिंदी ब्लॉग जगत के एक तथाकथित भाई साहब  जो स्वयं  संस्कारहीन होते हुए पिछले दिनों मेरे एक व्यंग्य पर मुझे संस्कार का पाठ पढ़ा रहा था  क्या यह हिंदी ब्लोगिंग के लिए खतरनाक नहीं है ?

मुझे लगा कि मैंने यह प्रश्न करके उनकी दुखती रगों पर नमक रख दिया हो, किन्तु मैं प्रश्न कर चुका था और वे चिंतन में खो गए थे ,पर थोड़ी ही देर में वे सहज हुए और एक हलकी सी मुस्कराहट उनके चहरे पर तैर गयी,उन्होंने शारदा बैराज पर राखी सौ साल पुरानी रेलगाड़ी के इंजन की ओर इशारा करते हुए कहा कि -" पाण्डेय जी उस रेलगाड़ी को देखिये, जबतक उसका समय था खूब चला और जब  कालांतर में इससे ज्यादा प्रतिभाशाली इंजन आया  तो यह प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हो गया ! आयुर्वेद में भी कहा गया है कि जो जितना चलेगा  उतना ही जिएगा और चलता वही है जो प्रगतिशील होता है !"

रवीन्द्र प्रभात जी कुछ और बोले इससे पहले सुमन जी ने फिर कहा -NICE , इसबार उनके NICE  बोलते ही वातावरण ठहाकों में परिवर्तित हो गया !

हम  लोग बातचीत में इतने मशगूल हो गए थे कि कब बानबासा से गडडा चौकी पहुंचे पता ही नहीं चला, यहाँ हम लोगों ने ऑटो लिया और महेंद्रनगर पहुंचे .

मेरे प्रश्न  के आलोक में प्रभात जी के उत्तर अधूरे रह गए थे इसलिए मैंने सोचा थोड़ा और छेड़ा जाए, मैंने कहा आपको नहीं लगता कि कुछ लोग गुटवाजी को महत्व देकर ब्लोगिंग के वातावरण की पवित्रता को नष्ट कर रहे हैं ?

उन्होंने कहा नहीं पाण्डेय जी मैं ऐसा नहीं मानता, हमारे गुरु पूर्णेंदु जी हमें अक्सर कहा करते थे कि रवीन्द्र यह प्रकृति का नियम है कि हर अगला कदम पिछले कदम से खौफ खाता है ,यही खौफ उन्हें नकारात्मक प्रवृतियों की तरफ उन्मुख कर देता है ! ऐसे लोगों से दूरी बनाया जाय न कि उनकी नकारात्मक प्रवृतियों में खुद को शामिल कर दिया जाए .!

इसे लेकर किसी को संशय नहीं होना चाहिए कि हिंदी चिट्ठाकारी उर्जावान ब्लोगरों का एक ऐसा बड़ा समूह बनता जा रहा है जो किसी भी तरह की चुनौतियों पर पार पाने में सक्षम है और उसने अपने को हर मोर्चे पर साबित भी किया है । वस्तुतरू विगत वर्ष की एक बड़ी उपलब्धि और साथ ही आशा की किरण यह रही है कि ब्लॉग के माध्यम से वातावरण का निर्माण केवल वरिष्ठ ब्लोगरों ने ही नहीं किया है ,अपितु एक बड़ी संख्या नए और उर्जावान ब्लोगरों की हुई है, जिनके सोचने का दायरा बहुत बड़ा है । वे सकारात्मक सोच रहे हैं, सकारात्मक लिख रहे हैं और सकारात्मक गतिविधियों में शामिल भी हो रहे हैं ।



इतना कहकर उन्होंने इशारा किया कि अब ब्लोगिंग के संबंध में कुछ न पूछा जाए क्योंकि इससे यात्रा का रोमांच समाप्त हो रहा है ,खैर कुल मिलाकर पूरा अनुभव अविस्मरणीय रहा।

22 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

nice with thanks

मनोज कुमार ने कहा…

धन्यवाद मनोज भाई,इस पोस्ट का लिंक मेल से भेजने के लिए।
आया तो था, NICE टाइप औपचारिक टिप्पणी करने, पर आपकी शैली और विषय की रोचकता ने ऐसा बांधा कि पूरा पढकर ही दम लिया और चर्चा की गंभीरता ने NICE को परे धकेल दिया।
आम तौर पर किसी ब्लॉगर मीट के बाद जो संस्मराणात्मक पोस्ट आते हैं उसमें वहां के बेहद नितांत व्यक्तिगत अनुभव होते हैं। पर आपने समय और अवसर का सदुपयोग करते हुए एक बेहद सार्थक चर्चा कर डाली और उसे हम सब से शेयर भी किया।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

यह मत समझिये कि पढ़ा नहीं है। अक्षरश: पढ़ा है, बेहतर है।

अजय कुमार झा ने कहा…

हा हा हा को नहिं जानत है कपि संकटमोचन नाम तिहारो ...

मतलब कि सपाट सन्नाट समझ गए बराबर से ...इसलिए नाईस हम भी नहीं लिखेंगे

ओम पुरोहित'कागद' ने कहा…

बधाई हो !
www.omkagad.blogspot.com

शिवम् मिश्रा ने कहा…

अरे मनोज जी यह सब तो ठीक है ... यह बताइए आपको नाम मिला कि नहीं या अभी तक बेनामी ही है ?? ; -)

रौशन जसवाल विक्षिप्त ने कहा…

nice

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ब्लॉगिंग में अनेको सम्भावनायें हैं।

honesty project democracy ने कहा…

शानदार और सराहनीय प्रस्तुती.....ब्लोगिंग को ऐसे पोस्टों से ही सार्थकता मिलती है.......बधाई और आभार.....

Minakshi Pant ने कहा…

खुबसूरत चर्चा !
बहुत खूब !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मनोज जी इस यात्रा में आपने ब्लोगिंग से जुड़े बहुत महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की है मुझे प्रभात जी की बात " मेरे विचार से प्रत्येक ब्लोगर अपनी सकारात्मक चिंतन धारा को ब्लोगिंग से जोड़े , यानी जब हम बदलेंगे तभी जग बदलेगा " बहुत पसंद आई...ये सौ बातों की एक बात कही है उन्होंने...हम ब्लॉग को अपनी भड़ांस निकलने का माध्यम न बनाएं तो ही इसका लाभ है . यात्रा आपने बीच में छोड़ दी आगे क्या हुआ ये भी तो बताएं...मेरे लिए खटीमा नयी जगह का नाम है जो पहले कभी नहीं सुना था.

नीरज

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहुत सुंदर।

---------
कावेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।

बेनामी ने कहा…

ओह यहाँ तो नाइस लिखने से काम नहीं चलेगा!
मेरे पास तो बस आभार ही है!

मनोज पाण्डेय ने कहा…

शिवम् जी,
हमारे गाँव में एक कहावत प्रचलित है कि बिल्ली के छींकने से शिका नहीं टूटता है और अनूप शुकल और उनके छुटभैये चेला सतीश सक्सेना के कहने से क्या मैं बेनामी हो जाऊंगा ! मैंने तो सार्वजनिक रूप से उपस्थित होकर उनके वक्तव्य को झुठलाया ही नहीं, अपितु मेरी उपस्थिति से उनके गोरे-गोरे गालों पर तमाचा भी पडा है या यूँ कहिये जोर का झटका जोरों से लगा है हिंदी ब्लॉगजगत के बदके भैया को !

मैं तो यही कहूंगा कि खामोश ! सुधर जाओ, तथाकथित मठाधीशों, नहीं तो जब मैं बेनामी कहूंगा तो हाशिये पर आ जाओगे ! खैर छोडिये बात करते हैं खटीमा ब्लोगर सम्मलेन की, तो यही कहूंगा कि -

सम्मलेन का जीबंत प्रसारण करके नि:संदेह गिरीश जी और अविनाश जी इस समारोह में तकनीकी की नयी मिसाल कायम की है, इन्हें कोटिश: शुभकामनाएं ! मैं तो ब्लॉगजगत का नन्हा ब्लोगर हूँ , किन्तु अपने को पहली बार इस समारोह में आदरणीय रवीन्द्र प्रभात जी जैसे व्यक्तित्व के आकर्षण में विल्कुल वेसुद्ध खोया हुआ पाया ! रवीन्द्र जी के बारे में जितना सुना था उससे कहीं ज्यादा विनम्र, सहृदय, आत्मीय, मृदुभाषी और आदर्श व्यक्तित्व के धनी हैं वे ! कार्यक्रम के दौरान जिसप्रकार हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में ब्लोगिंग की भूमिका विषय पर उन्होंने लगभग आधे घंटे बोला और वहां बैठे श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे सबकी जुबान से बस यही फूट रहा था कि यार हिंदी ब्लोगिंग में ऐसे भी लोग हैं, विल्कुल इनसाक्लोपीडिया ! मेरी तो ब्लोगिंग सार्थक हो गयी आदरणीय रवीन्द्र प्रभात जी, अविनाश जी, सुमन जी, राजीव तनेजा जी, पद्म सिंह जी, केवल राम जी, शास्त्री जी जैसे प्रबुद्ध ब्लोगरों के सानिध्य का सुख पाकर !

siddheshwar singh ने कहा…

बना रहे यह मानवीय स्पर्श!

सञ्जय झा ने कहा…

aapki atm-mugdhta bani rahe......

sadar.

राजीव तनेजा ने कहा…

बहुत बढ़िया...
हमारे जाने के बाद वहाँ पर जो-जो हुआ...उसकी भी पूरी खबर मिल गई...
आप सब से मिलकर बहुत अच्छा लगा

ZEAL ने कहा…

.

मनोज जी ,

बेहद सुन्दर एवं रोचक अंदाज़ में लिखा है संस्मरण। पूरे लेख को अंत तक पढने की उत्सुकता बनी रही। रविन्द्र जी के साथ आपके संवाद को पढ़कर बहुत को सीखने को मिला। सुमन जी की ' NICE' की परिभाषा बहुत अच्छी लगी । उनके परिपक्व विचारों से परिचय हुआ। धीर-गंभीर रविन्द्र जी के उत्तर बहुत संतुलित लगे। आपके प्रश्नों से मुझे भी मन में उठते हुए बहुत से प्रश्नों के उत्तर मिले।

The post is --

NICE

NICE

NICE

Indeed very nice.

Thanks and regards,

.

केवल राम ने कहा…

आदरणीय मनोज पाण्डेय जी
खटीमा से आने के बाद आज ही आपके ब्लॉग तक आ सका ....आपके साथ बिताये पल याद आते है तो दिल खुश हो जाता है ....खटीमा ब्लॉगर मिलन के बारे में क्या कहूँ ....सही मायने में अविस्मरनीय थे वो पल ....आपका लेखन बहुत सशक्त है ...अनवरत रूप से लिखते रहें .....और ब्लॉग जगत को समृद्ध करते रहें ...शुक्रिया

Satish Saxena ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
एस एम् मासूम ने कहा…

मनोज पाण्डेय मैं पहली बार आप के ब्लॉग पे आया और बहुत ही स्वस्थ लेख पड़ने को मिला. इस पेशकश के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मनोज जी .... आपने ब्लॉगिंग से जुड़े कई मुद्दे और ब्लॉगेर की इस मीट को बहुत प्रभावी तरीके से लिखा है ... ऐसी मीट सकारात्मक पहलुओं पे विचार करती है तो सार्थक शुरुआत होती है वो ... इस विस्त्रत रिपोर्ट के लिए बधाई ...