सोमवार, 27 दिसंबर 2010

व्यंग्य : बिन पेंदी का लोटा सम्मान


हमरे गाँव मा एक रहिन अकिला फुआ,गाँव मा जब भी केहू का कोई बात समझ में नाही आवत रहा त लोग अकिला फुआ के पास जाके पूछत रहेन की फुआ एका मतलब का बा ?काहे के अकिला फुआ बरहन होशियार रहिन ...!

हमरी भाषा बहुत लोगन के पल्ले कहीं न पड़े , ए से सोचत हाई की आपन बात हिंदी में ही समझाई आप लोगन के ....!

कहने  का  मतलब  यह  है  कि एक बार हमरे गाँव में बरात आई , बर पक्ष के लोगों ने वधु के लिए कई ऐसे मंहगे सामान लाये थे जो गाँव वालों ने कभी देखा नहीं था .उन  सामानों में  एक बड़ी हिल के सैंडल भी थे, जब लोगों के समझ में नहीं आया कि इसका इस्तेमाल कैसे होता है तो लोग अकिला फुआ के पास पहुंचे यह पूछने के लिए कि फुआ इसका उपयोग क्या है ?

अकिला फुआ को भी  नहीं मालूम था  कि आखिर यह है क्या ? मगर अकिला फुआ को अपने वर्चस्व  का खतरा महसूस हुआ, कि न बताएँगे तो मठाधीशी चली जायेगी, लोग मुझे ज्ञानी नहीं समझेंगे ! सो उसने कहा कि यह बहुत मंहगा जेबर है इसे कान में पहना जाता है ! लोग ख़ुशी-ख़ुशी अकिला फुआ की जय-जयकार  करते हुए वहां से चले गए मगर जब वधु उस सैंडल को कान में पहन कर ससुराल पहुंची होगी तो सोचिये कितनी जग हसाई हुई होगी !
अब  आईये श्रीमान आपको मिलवाते हैं अपने गाँव के खीश निपोर त्रिपाठी से ,पिछले दिनों बेचारा खीश निपोरबा के साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ . हुआ यों कि खीश निपोरबा   ने जलन वश गाँव के एक भद्र व्यक्ति को छेड़ा, अब भाई आज का लौंडा अपने बड़ों को छेड़ेगा तो गुस्सा आना स्वाभाविक है सो उसने जड़ दिया तमाचा और कहा औकात में रहो .....उसे बुरा लगा ! अब आज के लौंडों को कौन समझाये कि बिच्छु का मंतर  नहीं जानते थे तो सांप के बिल में हाथ क्यों डाला ?  नवा- नवा खून है समझाने पर समझेगा नहीं , इसलिए वेचारा भद्र व्यक्ति चुप रहा और खीश निपोरबा  बबाल काटता रहा ...... अब उस भद्र व्यक्ति को गाँव के लोग  सम्मान की नज़रों से देखते थे इसलिए  इस प्रकरण का  विरोध कोई क्यों करेगा भला ?

जब एक न चली तो खीश निपोरबा पहुंचा अकिला फुआ के पास यानी पञ्चमणि उर्फ़ पंचमवा  के पास, क्योंकि दूसरों के फटे में टांग अड़ाना उ बखूबी जानता था  ...नाम पंचम और बात दोयम दर्जे का ....ईहो नवा-नवा खून ठहरा  इसलिए मठाधीश बनने का शौक चर्राया सो बेचारे दोयम जी , अरे राम-राम मैंने यह क्या कह दिया हाँ याद आया पंचमवा  ने सोचा कि उ बरकऊ   को पटकनी देने के लिए चलो गड़ा मुर्दा उखाड़ते   हैं .....सो आव देखा न ताव उखाड़ दिया गड़ा मुर्दा !

बरकऊ की एक सबसे बड़ी कमजोरी थी  सबके अच्छे कामों की प्रशंसा करना , छ: सात महीना पाहिले उ गाँव के कुछ प्रतिभाशाली व्यक्तियों का सम्मान कर दिया पब्लिकली ,  जिसके अन्दर प्रतिभा नहीं उसको मिला ठेंगा ! ठेंगा बुझते  हैं न अरे अन्गूठवा  नीचे करना !

अब गरियाने के लिए कोई-न -कोई मुद्दा तो चाहिए ही न, भले ही छ:-सात  महीना के बाद ही सही .....सो लगा दिया आग और लगा तापने , ठंडी का समय था बहुत मजा आया ....गाँव के बाहर के भी कुछ लोग आ गए यानी दूसरे गाँव के मुखिया जी  और सरपंच जी  ....लगे राजनीति की रोटी सकने, पगला कहीं का इतना भी नहीं समझा कि अगबा से जब लुत्ती निकलेगा तो पहिले उसी के घास-फूस केघर पर गिरेगा न ,हुआ वही जब आग की लुत्ती से  दोयमबा का यानी पंचमबा का घर जल गया ,तो  इज्जत मटियामेट होते देख  खीश निपोरबा भागा वहां से दुम दबाके  !
जबतक आग जलता रहा, गाना बजता रहा "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए "और लौंडा के नाच देखने कब्र से लोग आते रहे जाते रहे ....अब सामने पंचमवा था तो शर्म के मारे लोग इस गाने पर बाह-बाह तो करबे करेंगे न , सो लोग पंचमवा की तारीफ़ करते अघा भी न रहे थे और इधर उधर देखके बरकऊ को गरिया भी रहे थे मगर जब हम पहुंचे त पंचमवा  लगा हमरे लिए जगह खाली करवाने    ...काहे के उ जानता था कि हम मुंह देखि बात तो करेंगे नहीं  जो सच होगा वही बोलेंगे .

जैसे ही हम पहुंचे पंचमवा कहने लगा कि ये भाई उठो ....जगह खाली करो .....बारूद जी आयें हैं ....अब यहाँ कुर्सी टेबुल भी तो नहीं है जहां इनको बैठाएं ......मगर अहो भाग्य हमारे जो श्रीमान जी पधारे ...!

भाई हम तो ठहरे शत्रु भाई के फैन अरे वही शत्रु भाई अपने शत्रुघ्न सिन्हा बिहारी बाबू , 
समझ गए न ? अब कोई भीगा के जुत्ता मारे तो हम कहाँ बर्दाश्त करने वाले,सो आव देखा न ताव हमने भी कह दिया का रे पंचमवा औकात भूल गया  है का रे ! कल तक तू  हमरे  सामने लंगटे घूमता था, याद है जब तुम पोटी करने खेत में गए थे तो तुमको पूरे गाँव में कुत्ता दौडाया था ,,,,आज  हमरे सामने नेता काहे बनता है रे .   तू तो हमरे लिए जगह ऐसे खाली करबा रहा है जैसे तबायफ के कोठे पर कोई मोटा आसामी आ गया हो, या फिर तुम्हरे लौंडा के नाच को देखने मुखिया जी आ गए हो . पगला कहीं का !

काहे बबाल काटे हुआ है  रे , अगर पुरस्कार चाहिए था तो धीरे से हमरे कान में कह दिए होते ...हम तुम्हरे लिए अलग से कोई पुरस्कार की घोषणा कर देते . बरकऊ  नहीं दिया तो का हुआ हम दे देते "बिना पेंदी का लोटा सम्मान"साथ में एक लेमनचूस भी  ....इतना सुनते लगा फफक फफक कर रोने हमरे कंधा पर अपना माथा रखके और कहने लगा कि भईया , आज पहली बार हमको कोई सम्मान के काबिल समझा है ! सच कहें त आपको असलियत बता देते हैं आजकल कोई भी चीज माँगने  से तो  मिलता नहीं है, इसीलिए यह सब करना पडा !

हमने कहा सुन , बरकऊ  के द्वारा जिसको-जिसको सम्मान नहीं दिया गया है ,सबको इक्कठा करो और हमारा सपोर्ट करो , हम नयी पार्टी बनायेंगे इस गाँव में और सबको सम्मानित करेंगे पब्लिकली, समझ गए न ?

समझ गया गुरुदेव , कायदे से समझ गया !

चल जब समझ गया तो अब बबाल मत काटो , मंच से इन लौंडन को हटाओ, हम आज ही असंतुष्टों की एक नयी पार्टी बनायेंगे और अपनी पार्टी की ओर से तुम जैसे कुछ और उत्साहियों को सम्मानित करने की घोषणा करेंगे .


सो जैसे तैसे हमने सम्मान की घोषणा की तब जाके बबाल थमा .इसी को कहते हैं आँख का अंधा नाम नयनसुख .....! 

चलिए लगे हाथ आपको सम्मान की उद्घोषणा से अवगत करा ही देते है , फिर मत कहिएगा कि मनोजबा बताया नहीं -
(१) अरूप शुकुलबा  को दिया गुरु घंटाल सम्मान ( प्राईमरी का एक स्लेट और चार लेमनचूस के साथ कानपुर की फैकटरी में बना चमड़े का प्रशस्ती पत्र )
(२) खीश निपोर त्रिपाठिया को दिया टपक गिरधारी सम्मान ( अयोध्या में बना एक अंगौछा और  चार लेमनचूस )
(३)पञ्च मणि उर्फ़ पंचमवा को दिया बिन पेंदी का लोटा सम्मान  ( मुरादाबाद का एक बिना पेंदी का लोटा और चार लेमनचूस )
ये तीन शिखर सम्मान से हमने अवगत करा दिया, बाकी का जो  टटपुजिया  सम्मान है वह उनके अनुयायियों को दिया जाएगा , ताकि उनका मुंह बंद रहे , इसपर लगातार मंथन वैठक जारी है ......!
ये तो रही हमरे गाँव की कहानी , आपके गाँव में भी ऐसा ही होता है क्या ?
बताईयेगा जरूर !
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------
यह खालिश व्यंग्य है,किसी भी जीवित व्यक्ति या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है,किन्तु किसी घटना या वास्तविक पात्र से मेल खा जाए तो महज इत्तेफाक समझें !

21 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

बहुत सटीक व्यंग लिखा है आपने।
जबरदस्त।

अविनाश ने कहा…

मनोज भाई
इतना भिगाना ठीक नहीं
लोटे में से पेंदा हटाना ठीक नहीं
आप सम्‍मान दे रहो हो
उन्‍हें इतना लुढ़कवाना ठीक नहीं
टटपूंजिया सम्‍मान के लिए मंथन
इन थनों में मन ही नहीं है
इनके लिए काहे मंथन

मुझे तो लग रहा है
यह खालिश हकीकत है
इसका व्‍यंग्‍य विधा से
नहीं होगा कोई संबंध परंतु
जीवित व्‍यक्तियों और घटनाओं से
पूरी नाते-रिश्‍तेदारी दिखलाई दे रही है

आप कहते हो तो
महज इत्‍तेफाक समझ लेते हैं
पर वे समझदार क्‍या करेंगे ???

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सभी को सम्‍मान मुबारक हो।

---------
अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

सोमेश सक्सेना ने कहा…

मनोज जी यह स्वस्थ व्यंग्य नहीं है। इस तरह किसी को गाली देने से और उनकी बेइज्जती करने से आप अपनी भड़ास तो निकाल सकते हैं पर विरोध का यह कोई तरीका नहीं है। तर्कपूर्ण तरीके से बात करने के बजाय आप कुतर्क दे रहे हैं। मैं इस लेख की आलोचना करता हूँ।
खैर... आप का ब्लॉग है, आप कुछ भी लिखने को स्वतंत्र हैं और मेरी इस टिप्पणी को डिलीट करने को भी। जैसा कि आपके बरकऊ जी करते रहे हैं।

नमस्कार

मनोज पाण्डेय ने कहा…

अब लीजिये सोमेश भाई ,
लग गयी न मिर्ची ? सोचिये उस दिन गाँव माँ पंचमवा के विरोध प्रदर्शन में आप भी गरिया रहे थे न बरक ऊ को, वहां भी आलोचना करना चाहिए था न की ऐसा न करो ....
वैसे घबराईये मत मंथन चल रहा है, आप भी पुरस्कार के पाईप लाईन में हैं !

सोमेश सक्सेना ने कहा…

भैया हमे मिर्ची क्यों लगेगी भला। हम तो इस काण्ड मे कहीं से भी शामिल नहीं हैं। हमे तो जो चीज़ सही लगती है उसका समर्थन करते हैं और जो गलत लगती है विरोध करते हैं। अपनी राय व्यक्त करने का हक़ तो हमे भी है साहब।

और पुरस्कार तो हम तभी लेते हैं जब उसके साथ अच्छी खासी रकम भी हो। फोकट के सम्मान- पुरस्कार हम स्वीकार नहीं करते। सो इसके लिए क्षमा करें।

मनोज पाण्डेय ने कहा…

हम भी आपका समर्थन करते हैं इस विषय पर ....वैसे हमारे गाँव मा आपकी मानसिकता के बहुत लोग हैं ......जब बिना धन को हाथ लगाए बाबू भी फाईल नहीं छूता है तो आप जैसे सरस्वती पुत्र भला कैसे छू सकते हैं , वैसे चार लेमनचूस तो दे रहे हैं न , यदि एक लेमनचूस आठ आने का हुआ तो दो रुपये बनेंगे न ? हा हा हा ...

गीतेश ने कहा…

सचमुच गज़ब का व्यंग्य लिखा है पाण्डेय जी आपने . अपने गाँव के लौंडों को जोर का झटका धीरे से दिया है आपने, आप के जैसा ही कुछ कुछ हमारा भी गाँव है !

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bahoot hi badita vyang hai bhai ji......... ekdam jhakkash.
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

Randhir Singh Suman ने कहा…

sabhi samman prapt chitthakaron ko loksangharsh ki taraf se haardik badhai aur aane vaale dino mein bhi is tarah k samman ki patrta aap rakhte hain. mera samman prapt chitthakaron ko koti koti naman.

nice....

हिंदीब्लॉगजगत ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अविनाश वाचस्पति ने कहा…

किसने कहा कि नकद नारायण नहीं है
क्‍या अंदर की खबर बाहर नहीं है जी
नकद भी है, नारायण भी है
और मौजूदा रणक्षेत्र भी है
पर लडि़एगा मत
गिरीश बिल्‍लौरे और अविनाश वाचस्‍पति की वीडियो बातचीत

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

जानदार, शानदार तो बहुत से लिख लेते हैं, आप तो एकदम पिलानदार लिख मारे हैं। जिन को सम्मान देने की घोषणा की है आपने, उन्हें तो हम पहले से जानते हैं, पढ़ते हैं इसलिये कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। आपके बरकऊ से ज्यादा परिचय नहीं था, अपनी नजर में तो सज्जन पुरुष ही थे अब तक। अब छुटकऊ देख लिये हैं तो बरकऊ का भी अंदाजा लग ही रहा है। रही बात ईनाम की, तो
पाण्डेय जी, जो है आपके पास तो वही न बाँटेंगे. लैमनचूस। फ़िर ईनाम तो ईनाम है, अनुयाईयों वाले सम्मान के लिये हम भी पात्र हैं ही।
दबंग लगते हैं आप अपने तेवर से, ये काहे लिख दिया पोस्ट के अंत में कि..
"यह खालिश व्यंग्य है,किसी भी जीवित व्यक्ति या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है,किन्तु किसी घटना या वास्तविक पात्र से मेल खा जाए तो महज इत्तेफाक समझें !"

Shiv ने कहा…

इसे व्यंग कहकर व्यंग का अपमान न करें.

किसी के लिए भी इस तरह की बातें लिखना आजकल बहुत आसान है. ढंग का लिखना बहुत मुश्किल.

आपसे पहले भी तमाम लोग़ आये हैं जिन्होंने पुरस्कार वगैरह दिया है. आप भी दे देंगे तो कौन सी क्रांति आ जायेगी?

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अच्छा है यह व्यंग्य...सब लोग तो ऐसा ही कह रहे हैं.
____________________
'पाखी की दुनिया' में तन्वी अब दो माह की...

सञ्जय झा ने कहा…

pandey ji photuwa to mykal-jackson ke lagayele hain.....likin dance up-bihar ke natua ke tarah
kar rahe hain......

bhai sab chalta hai......

Satish Saxena ने कहा…


शिव शर्मा की बात से सहमत हूँ ...
सतीश पंचम के ब्लॉग पर वह कमेन्ट मैंने भी देखा था ....
उस दिन आप अनावश्यक क्रोध में थे....

जहाँ तक मैं समझ रहा हूँ यह बेनामी ब्लॉग है यकीनन आप हम में से ही कोई हैं जो नियमित लिखते हैं ! आपके उपरोक्त भाषा से यह तो पता चल ही रहा है कि विद्वान् है और निजी जीवन में सम्मानित भी....

इसीलिये यह टिप्पणी कर रहा हूँ ...

आप सहित हम सब किसी न किसी क्षेत्र के विद्वान् और जानकार हैं , ब्लॉग जगत में स्वाभाविक क्रोध के कारण बेनामी बन कर अपमानजनक टिप्पणी करना अशोभनीय है ! ऐसा कुछ न लिखें जो आप अपने लिए लिखे जाने पर असहनीय मानें !

अनूप शुक्ल , सतीश पंचम आदि का ब्लॉग जगत में योगदान रहा है, अगर किसी कारण आप इनका सम्मान न करना चाहते हो तो इनको पढना बंद कर दें ....

कम से कम अपमान न करें ...
यह अनुरोध नहीं, आपके संस्कारों के लिए चेतावनी है ...

यही संस्कार आपकी अगली पीढी हमसे स्वीकारेगी , मगर उस समय हम वृद्ध होंगे और शायद तब हम बेहतर समझ पायेंगे कि हमने क्या किया था ....

सादर
पुनश्च: मो सम कौन की तरह अनुयायियों की लाइन में हम भी खड़ें हैं यार .....

मनोज पाण्डेय ने कहा…

सतीश भैया,
जिस असंस्कारिकता की बात आप मुझसे कर रहे हो वह तो मैंने आप ही से सिखा है प्रभु ! इस दृष्टि से तो आप मेरे आदर्श हैं . कम से कम आप तो न कीजिये संस्कार की बात, रही बेनामी ब्लॉग की बात तो देर सबेर आप मुझसे मिलेंगे भी और मेरी प्रतिभा को प्रणाम भी करेंगे, थोड़ा सब्र कीजिये और मेरे व्यंग्य का आनंद लीजिये और हाँ मेरे व्यंग्य में मेरे गाँव के पात्रों के वास्तविक नाम को बदलकर अर्थ का अनर्थ न करें, भले ही वह पात्र काल्पनिक है मगर हमारे पात्रों का कोई न कोई वजूद तो हैं ही न .....हा हा हा हा !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kuchh lemanchooss hame bhi de do thakur..........:P

kya jaandaar vyangya hai...

मनोज पाण्डेय ने कहा…

इसमें कोई संदेह है मुकेश जी,
भला आपको लेमनचूस नहीं देंगे तो किसे देंगे, आप तो हमारे प्रदेश के हैं !

Arvind Mishra ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.