हमरे गाँव मा एक रहिन अकिला फुआ,गाँव मा जब भी केहू का कोई बात समझ में नाही आवत रहा त लोग अकिला फुआ के पास जाके पूछत रहेन की फुआ एका मतलब का बा ?काहे के अकिला फुआ बरहन होशियार रहिन ...!
हमरी भाषा बहुत लोगन के पल्ले कहीं न पड़े , ए से सोचत हाई की आपन बात हिंदी में ही समझाई आप लोगन के ....!
कहने का मतलब यह है कि एक बार हमरे गाँव में बरात आई , बर पक्ष के लोगों ने वधु के लिए कई ऐसे मंहगे सामान लाये थे जो गाँव वालों ने कभी देखा नहीं था .उन सामानों में एक बड़ी हिल के सैंडल भी थे, जब लोगों के समझ में नहीं आया कि इसका इस्तेमाल कैसे होता है तो लोग अकिला फुआ के पास पहुंचे यह पूछने के लिए कि फुआ इसका उपयोग क्या है ?
अकिला फुआ को भी नहीं मालूम था कि आखिर यह है क्या ? मगर अकिला फुआ को अपने वर्चस्व का खतरा महसूस हुआ, कि न बताएँगे तो मठाधीशी चली जायेगी, लोग मुझे ज्ञानी नहीं समझेंगे ! सो उसने कहा कि यह बहुत मंहगा जेबर है इसे कान में पहना जाता है ! लोग ख़ुशी-ख़ुशी अकिला फुआ की जय-जयकार करते हुए वहां से चले गए मगर जब वधु उस सैंडल को कान में पहन कर ससुराल पहुंची होगी तो सोचिये कितनी जग हसाई हुई होगी !
अब आईये श्रीमान आपको मिलवाते हैं अपने गाँव के खीश निपोर त्रिपाठी से ,पिछले दिनों बेचारा खीश निपोरबा के साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ . हुआ यों कि खीश निपोरबा ने जलन वश गाँव के एक भद्र व्यक्ति को छेड़ा, अब भाई आज का लौंडा अपने बड़ों को छेड़ेगा तो गुस्सा आना स्वाभाविक है सो उसने जड़ दिया तमाचा और कहा औकात में रहो .....उसे बुरा लगा ! अब आज के लौंडों को कौन समझाये कि बिच्छु का मंतर नहीं जानते थे तो सांप के बिल में हाथ क्यों डाला ? नवा- नवा खून है समझाने पर समझेगा नहीं , इसलिए वेचारा भद्र व्यक्ति चुप रहा और खीश निपोरबा बबाल काटता रहा ...... अब उस भद्र व्यक्ति को गाँव के लोग सम्मान की नज़रों से देखते थे इसलिए इस प्रकरण का विरोध कोई क्यों करेगा भला ?
जब एक न चली तो खीश निपोरबा पहुंचा अकिला फुआ के पास यानी पञ्चमणि उर्फ़ पंचमवा के पास, क्योंकि दूसरों के फटे में टांग अड़ाना उ बखूबी जानता था ...नाम पंचम और बात दोयम दर्जे का ....ईहो नवा-नवा खून ठहरा इसलिए मठाधीश बनने का शौक चर्राया सो बेचारे दोयम जी , अरे राम-राम मैंने यह क्या कह दिया हाँ याद आया पंचमवा ने सोचा कि उ बरकऊ को पटकनी देने के लिए चलो गड़ा मुर्दा उखाड़ते हैं .....सो आव देखा न ताव उखाड़ दिया गड़ा मुर्दा !
बरकऊ की एक सबसे बड़ी कमजोरी थी सबके अच्छे कामों की प्रशंसा करना , छ: सात महीना पाहिले उ गाँव के कुछ प्रतिभाशाली व्यक्तियों का सम्मान कर दिया पब्लिकली , जिसके अन्दर प्रतिभा नहीं उसको मिला ठेंगा ! ठेंगा बुझते हैं न अरे अन्गूठवा नीचे करना !
जबतक आग जलता रहा, गाना बजता रहा "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए "और लौंडा के नाच देखने कब्र से लोग आते रहे जाते रहे ....अब सामने पंचमवा था तो शर्म के मारे लोग इस गाने पर बाह-बाह तो करबे करेंगे न , सो लोग पंचमवा की तारीफ़ करते अघा भी न रहे थे और इधर उधर देखके बरकऊ को गरिया भी रहे थे मगर जब हम पहुंचे त पंचमवा लगा हमरे लिए जगह खाली करवाने ...काहे के उ जानता था कि हम मुंह देखि बात तो करेंगे नहीं जो सच होगा वही बोलेंगे .
जैसे ही हम पहुंचे पंचमवा कहने लगा कि ये भाई उठो ....जगह खाली करो .....बारूद जी आयें हैं ....अब यहाँ कुर्सी टेबुल भी तो नहीं है जहां इनको बैठाएं ......मगर अहो भाग्य हमारे जो श्रीमान जी पधारे ...!
भाई हम तो ठहरे शत्रु भाई के फैन अरे वही शत्रु भाई अपने शत्रुघ्न सिन्हा बिहारी बाबू , समझ गए न ? अब कोई भीगा के जुत्ता मारे तो हम कहाँ बर्दाश्त करने वाले,सो आव देखा न ताव हमने भी कह दिया का रे पंचमवा औकात भूल गया है का रे ! कल तक तू हमरे सामने लंगटे घूमता था, याद है जब तुम पोटी करने खेत में गए थे तो तुमको पूरे गाँव में कुत्ता दौडाया था ,,,,आज हमरे सामने नेता काहे बनता है रे . तू तो हमरे लिए जगह ऐसे खाली करबा रहा है जैसे तबायफ के कोठे पर कोई मोटा आसामी आ गया हो, या फिर तुम्हरे लौंडा के नाच को देखने मुखिया जी आ गए हो . पगला कहीं का !
काहे बबाल काटे हुआ है रे , अगर पुरस्कार चाहिए था तो धीरे से हमरे कान में कह दिए होते ...हम तुम्हरे लिए अलग से कोई पुरस्कार की घोषणा कर देते . बरकऊ नहीं दिया तो का हुआ हम दे देते "बिना पेंदी का लोटा सम्मान"साथ में एक लेमनचूस भी ....इतना सुनते लगा फफक फफक कर रोने हमरे कंधा पर अपना माथा रखके और कहने लगा कि भईया , आज पहली बार हमको कोई सम्मान के काबिल समझा है ! सच कहें त आपको असलियत बता देते हैं आजकल कोई भी चीज माँगने से तो मिलता नहीं है, इसीलिए यह सब करना पडा !
हमने कहा सुन , बरकऊ के द्वारा जिसको-जिसको सम्मान नहीं दिया गया है ,सबको इक्कठा करो और हमारा सपोर्ट करो , हम नयी पार्टी बनायेंगे इस गाँव में और सबको सम्मानित करेंगे पब्लिकली, समझ गए न ?
समझ गया गुरुदेव , कायदे से समझ गया !
चल जब समझ गया तो अब बबाल मत काटो , मंच से इन लौंडन को हटाओ, हम आज ही असंतुष्टों की एक नयी पार्टी बनायेंगे और अपनी पार्टी की ओर से तुम जैसे कुछ और उत्साहियों को सम्मानित करने की घोषणा करेंगे .
सो जैसे तैसे हमने सम्मान की घोषणा की तब जाके बबाल थमा .इसी को कहते हैं आँख का अंधा नाम नयनसुख .....!
चलिए लगे हाथ आपको सम्मान की उद्घोषणा से अवगत करा ही देते है , फिर मत कहिएगा कि मनोजबा बताया नहीं -
(१) अरूप शुकुलबा को दिया गुरु घंटाल सम्मान ( प्राईमरी का एक स्लेट और चार लेमनचूस के साथ कानपुर की फैकटरी में बना चमड़े का प्रशस्ती पत्र )
(२) खीश निपोर त्रिपाठिया को दिया टपक गिरधारी सम्मान ( अयोध्या में बना एक अंगौछा और चार लेमनचूस )
(३)पञ्च मणि उर्फ़ पंचमवा को दिया बिन पेंदी का लोटा सम्मान ( मुरादाबाद का एक बिना पेंदी का लोटा और चार लेमनचूस )
ये तीन शिखर सम्मान से हमने अवगत करा दिया, बाकी का जो टटपुजिया सम्मान है वह उनके अनुयायियों को दिया जाएगा , ताकि उनका मुंह बंद रहे , इसपर लगातार मंथन वैठक जारी है ......!
ये तो रही हमरे गाँव की कहानी , आपके गाँव में भी ऐसा ही होता है क्या ?
बताईयेगा जरूर !
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यह खालिश व्यंग्य है,किसी भी जीवित व्यक्ति या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है,किन्तु किसी घटना या वास्तविक पात्र से मेल खा जाए तो महज इत्तेफाक समझें !